शनिवार, २ जानेवारी, २०२१

झायं आपुरं आभाय

[अहिरानी खान्देशी बोली भाषा]                                    
     *झायं आपुरं आभाय*
जोतिबानी वं अस्तुरी 
मन्ही सायतरा माय
माय शिकनी व साय
         ग म भ न र्हास काय ॥धृ॥
शिकी सवरीनी माय 
उनी शिकाडाले साय
माय आम्हना करता
         झायी सारसता माय ॥१॥
नही ठाऊक आम्हले 
न्यानेसरी र्हास काय
ग्यान शिकाडे आम्हले 
           एक सायतरा माय॥२॥
दीन अनाथ लेकरु
मन्ही साऊ नी समायं
माय झायी सेवाभावी
        दिनरात खस्ता खाय ॥३॥
आशी व्हयी गयी माय
मन्ही सायतरा माय 
हिना मुयेच आम्हले 
        आज आपुरं आभायं ॥४॥
    *--निसर्ग सखी सौ मंगला मधुकर रोकडे.*
*शब्दसृष्टी*, मास्तरवाडी, नेहरु नगर, देवपूर, धुये. 
दूरध्वनी क्र. :-९३७१९०२३०३.
शब्दार्थ-- अस्तुरी =पत्नी, मन्ही =माझी, सायतरा =सावित्री,  साय=शाळा, र्हास=राहते, उनी=आली, सारसता=सरस्वती झायी=झाली, ग्यान=ज्ञान, न्यानेसरी =ज्ञानेश्वरी, समायं=सांभाळलं, व्हयी गयी=होऊन गेली, हिनामुये =हिच्या मुळे, आभाय=आभाळ, आपुरं=अपुरं अपूर्ण.
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